मुट्ठी से सरकता जीवन I Abhishek Shukla I Poetry
0मुट्ठी से सरकता जीवन । अभिषेक शुक्ल मुट्ठी में बंद रेतधीरे-धीरे सरकने लगती है और एक वक़्त के बाद हम अपनी खाली मुट्ठी लिए बैठे रह...
मुट्ठी से सरकता जीवन । अभिषेक शुक्ल मुट्ठी में बंद रेतधीरे-धीरे सरकने लगती है और एक वक़्त के बाद हम अपनी खाली मुट्ठी लिए बैठे रह...
और फिर एक दिन I सुजाता गुप्ता और फिर एक दिनएक शहर बेटे को बुला लेता है। और फिर एक दिन एक शहर पिता को रोक...
माँ । Poetry I समृद्धि माँ तुम्हेंकुछ कम माँ होना चाहिए था ताकि तुम्हारे हिस्से आ पाती थोड़ी ज़्यादा नींद,कुछ कम थकान,थोड़ा लम्बा वसंतऔर ज़रा देर...
भटकाव । हेमन्त परिहार भटकाव मंज़िल के करीब पहुँचने का पहला रास्ता है,जब तक आप भटकना नहीं जानतेतब तक ठहराव को भी जान पाना मुश्किल है।...
मुझे चाहिए । अशोक वाजपेयी मुझे चाहिए पूरी पृथ्वीअपनी वनस्पतियों, समुद्रोंऔर लोगों से घिरी हुई,एक छोटा-सा घर काफ़ी नहीं है। एक खिड़की से मेरा काम नहीं...
कितने दिन और बचे हैं । अशोक वाजपेयी कोई नहीं जानता किकितने दिन और बचे हैं? चोंच में दाने दबाएअपने घोंसले की ओरउड़ती चिड़िया कब सुस्ताने...
आदमी का गाँव । आदर्श भूषण हर आदमी के अंदर एक गाँव होता हैजो शहर नहीं होना चाहताबाहर का भागता हुआ शहरअंदर के गाँव को बेढंगी...
अपने घर की तलाश में । निर्मला पुतुल अंदर समेटे पूरा का पूरा घरमैं बिखरी हूँ पूरे घर में पर यह घर मेरा नहीं है बरामदे...
बुख़ार में कविता I श्रीकांत वर्मा मेरे जीवन में एक ऐसा वक्त आ गया हैजब खोने कोकुछ भी नहीं है मेरे पास –दिन, दोस्ती, रवैया,राजनीति,गपशप, घासऔर...
एक खिड़की I अशोक वाजपेयी मौसम बदले, न बदलेहमें उम्मीद कीकम से कमएक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए। शायद कोई गृहिणीवसंती रेशम में लिपटीउस वृक्ष के...