Ashok Vajpeyi

मुझे चाहिए । Ashok Vajpeyi I Poetry

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मुझे चाहिए । अशोक वाजपेयी मुझे चाहिए पूरी पृथ्वीअपनी वनस्पतियों, समुद्रोंऔर लोगों से घिरी हुई,एक छोटा-सा घर काफ़ी नहीं है। एक खिड़की से मेरा काम नहीं...

एक खिड़की I Ashok Vajpeyi I Poetry

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एक खिड़की I अशोक वाजपेयी मौसम बदले, न बदलेहमें उम्मीद कीकम से कमएक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए। शायद कोई गृहिणीवसंती रेशम में लिपटीउस वृक्ष के...