जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा I Shaharyar I Ghazal

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जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा I शहरयार

जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
समझौता कोई ख़्वाब के बदले नहीं होगा

अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा

ख़ुश-फ़हमी अभी तक थी यही कार-ए-जुनूँ में
जो मैं नहीं कर पाया किसी से नहीं होगा

तदबीर नई सोच कोई ऐ दिल-ए-सादा
माइल-ब-करम तुझ पे वो ऐसे नहीं होगा

बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ
जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा

शहरयार I Shaharyar I Ghazal

Ghazal I Vijit Singh Studio

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