उदासी बैठ के उसकी कलाई काटती है । अभिसार गीता शुक्ल
उसी तरह से मुझे ये जुदाई काटती है
किसी परिन्दे को जैसे रिहाई काटती है
कोई भी ख़ुद से कभी ख़ुदकुशी नहीं करता
उदासी बैठ के उसकी कलाई काटती है
किसी से कह नहीं पाते पर इक उमर के बाद
जी लड़को को पिता जी की कमाई काटती है
अभिसार गीता शुक्ल । Abhisar Geeta Shukla
Ghazal I Vijit Singh Studio