और फिर एक दिन I Sujata Gupta I Poetry

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और फिर एक दिन I सुजाता गुप्ता

और फिर एक दिन
एक शहर बेटे को बुला लेता है।

और फिर एक दिन
एक शहर पिता को रोक लेता है।

और फिर एक दिन
इन दो शहरों के बीच
एक रिश्ता बेघर हो जाता है।

और फिर एक दिन
दुनियादारी के रास्तों में
अपनापन भटक जाता है।

और फिर एक दिन
मजबूरी का बस्ता
फिर से कंधों पर लटक जाता है।

और फिर एक दिन
हंसता हुआ बचपन
दिल पर पत्थर रख विदा हो जाता है।

सुजाता गुप्ता । Sujata Gupta I Poetry

Poetry I Vijit Singh Studio

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