मुट्ठी से सरकता जीवन । अभिषेक शुक्ल
मुट्ठी में बंद रेत
धीरे-धीरे सरकने लगती है
और एक वक़्त के बाद
हम अपनी खाली मुट्ठी लिए
बैठे रह जाते हैं;
जीवन रेत की तरह है
कितना भी बचाएँगे
वह सरकता ही जाएगा
और धीरे-धीरे मुट्ठी खाली हो जाएगी…
इससे पहले कि जीवन
हाथों से सरक जाए
वह सबकुछ करने का जोख़िम लेना
जो तुमने सोचा है;
अपना सोचा हुआ कर लेने के बाद
हाथों से सरकता हुआ जीवन भी
सुखद लगता है।
अभिषेक शुक्ल I Abhishek Shukla I Poetry
Poetry I Vijit Singh Studio