हारना I Yatindra Mishra I Poetry

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हारना I यतीन्द्र मिश्र

कई बार जीवन में
हारना अच्छा लगता है
जैसे झुकना अच्छा लगता है अक्सर
अपनी ही बनाई
वर्जना के ख़िलाफ़

यह जानना कम दिलचस्प नहीं
ग़लत थे हम हर उस जगह
जहाँ पक्का यक़ीन था
अपने सही होने पर

उग आई थी वहाँ अहं की घास
और धूसर रंगों में फैली थी
उसके नीचे की सूखी मिट्टी
ख़ुद को हर हालत में सही साबित करती

इस जीवन में हारना कई बार
अपनी ही जड़ता को तोड़ना भी है।

  • यतीन्द्र मिश्र I Yatindra Mishra I Poetry

Poetry I Vijit Singh Studio

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